मूक-आलाप
मैं ज़िंदा हूँ
बस मैं ही ज़िंदा हूँ
मालूम ही ना चला
और सब मर गए
सैकड़ो किरदार जो
रहा करते थे मुझमें
कभी अकेला न था
चाहे इर्द गिर्द कोई न हो
जाने कब बहका इस भीड़ से
तमाशे से,
आज याद किया
तो सब मर चुके थे
क्या बजह रही होगी
भूख से , नहीं उनको तो आदत थी उसकी
घुटन से, नहीं वो तो कही ज्यादा है बाहर
कोई बीमारी, उपेक्षा तो नहीं
पर वो सब इनसे ही तो जन्मे थे
फिर भी मर गए
मैं रोना चाहता हूँ पर
लोग क्या कहेंगे
या की मैं खुश होऊ
की मैं अभी जिन्दा हूँ
और सब्र करूँ की मरते हैं
हर दिन सैकड़ो
सैकड़ो लोगों के अंदर।
खुद से जज्बातों को खोते जा रहा हूँ
मैं अकेला आज होते जा रहा हूँ।
Wah..Kya soch h...
ReplyDelete