Saturday 28 February 2015
मंा
की मंा यानि नानी
बस यही
पहचान नहीं मोहताज नाम की
एक रिश्ता
सबसे बडा बूढा और शायद अपने अन्त
पर
ल्ेकिन
सबसे प्यारा प्रेम से परिपूर्ण
इतना
की दिल भर आता है नानी बोलते ही
मंा
की सबसे बडी चिन्तक प्रेम करने वाली
लेकिन
सबसे ज्यादा उपेक्षित मंा के साथ के लिए
दोनों
का रिश्ता इस कदर लगे अधूरे हैं अलग अलग
लेकिन
सच्चाई है अधूरा रहना और ये ही अन्त
भूल
नहीं सकता वो नानी का प्यार
मेरी
मंा की लिए कहीं ज्यादा मेरे लिए
नानी
कहॅंा होगी पर जरूर अकेली होगी ।
Sunday 15 February 2015
हम देखते हैं जिन्दगी जहॅंा हम हैं
भूल
जाते हैं जहॅंा हम थे
बस यही
भूल पैदा करती है एक ईर्ष्या ] वैमनस्य
इस भूल
को सुधारें तो जिन्दगी
जिन्दगी
तो सबकी एक है
और उसका
अपना अपना मजा जीने का] सलीका है
उसे
नापना बडी बडी इमारतों से गाडियों से
पैसों
से एक भूल है हमारी ।
जिन्दगी
का मजा तो अन्दर है अपने
उस मजे
की इमारत बनाने लगे
तो ये
सारे चमक दमक वाले
कंगाल
नजर आऐंगे
और वो
दाल रोटी वाले
बाजी
मार जाऐंगे....
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