वक्त: दो पहलू
पहली बार था वो जब मैं स्टेशन पर खडा था
पैसेन्जर गाडी के इन्तजार में
गाडी आई और एक हुजूम सा निकला
एक लगभग 12 साल का बच्चा भी
एक एक करके 9 बोरे भूसे के निकाले उसने
काफी गुस्सा आया साथ ही आश्चर्य भी
और एक एक करके उन्हें ले जाता रहा वो
एक प्लेटफार्म से पटरियों की दूसरी ओर
मैं गाडी के गेट पर लगभग लटके हुऐ उसे देखता रहा
वो पहली दफा था----
फिर तो एक चक्र सा बन गया
मेरा जाना उसका लगभग हर बार दिखना
उतरना और फिर मेरा उसको उनको ले जाते देखना
वक्त निकलता जाता है...
आज 20 साल बाद में फिर आया
एक शाही गाडी के वातानुकूलित कोच से उतरते हुए
एक लम्बी गहरी संास ली और नजरे दौडाई
देखने को जो मुझे लेने आने वाले थे
फिर अनायास उसी वक्त
वो ही पैसेन्जर आई और मैं कुछ खोजने लगा
अचानक सामने धम से एक बोरा गिरा
और फिर निकला एक जर्जर और झुका हुआ
कमजोर और बीमार सा आदमी
जिसका चेहरा मैं कैसे भूल सकता था
और मैं देखता रहा उसे तब तक जब तक वो ओझल नहीं हुआ
पहली बार था वो जब मैं स्टेशन पर खडा था
पैसेन्जर गाडी के इन्तजार में
गाडी आई और एक हुजूम सा निकला
एक लगभग 12 साल का बच्चा भी
एक एक करके 9 बोरे भूसे के निकाले उसने
काफी गुस्सा आया साथ ही आश्चर्य भी
और एक एक करके उन्हें ले जाता रहा वो
एक प्लेटफार्म से पटरियों की दूसरी ओर
मैं गाडी के गेट पर लगभग लटके हुऐ उसे देखता रहा
वो पहली दफा था----
फिर तो एक चक्र सा बन गया
मेरा जाना उसका लगभग हर बार दिखना
उतरना और फिर मेरा उसको उनको ले जाते देखना
वक्त निकलता जाता है...
आज 20 साल बाद में फिर आया
एक शाही गाडी के वातानुकूलित कोच से उतरते हुए
एक लम्बी गहरी संास ली और नजरे दौडाई
देखने को जो मुझे लेने आने वाले थे
फिर अनायास उसी वक्त
वो ही पैसेन्जर आई और मैं कुछ खोजने लगा
अचानक सामने धम से एक बोरा गिरा
और फिर निकला एक जर्जर और झुका हुआ
कमजोर और बीमार सा आदमी
जिसका चेहरा मैं कैसे भूल सकता था
और मैं देखता रहा उसे तब तक जब तक वो ओझल नहीं हुआ
No comments:
Post a Comment